गुरुवार, 25 मार्च 2010

लोहिया के लोग


बीते तीन दशकों से लोहिया के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने ही लोहिया की विचारधारा को सबसे ज्यादा पलीता लगाया है। जब पूरा देश महंगाई से जूझ रहा है। जनता त्रस्त है। सडक़ों पर संघर्ष शुरु हो गया है। लोहिया के लोग मूर्ति अनावरण में उलझे हैं। उनके जन्मदिन के नाम पर राजनीति हो रही है।
आजादी के बाद भारत की राजनैतिक धारा को डा.राममनोहर लोहिया ने बहुत प्रभावित किया है। उन्होंने कांग्रेस के एकछत्र राज में सेंध लगाई। महिलाओं की स्थिति से लेकर पिछड़ों के संघर्ष में लोहिया का बड़ा योगदान रहा। चश्मे के पीछे से झांकती लोहिया की आंखें अगली पीढिय़ों के लिए सपने देखती थी। लोहिया ने देश में समाजवाद की ऐसी बयार चलाई कि समाजवादी होना भी फैशन हो गया। उन्होंने किसान और मजदूर के घरों से नेता तैयार किए तो ग्लैमर जगत के राज बब्बर जैसे लोग भी लोहियावादी हुई। दिल्ली में लोहिया के लोगों का बैनर आज भी लगा नजर आता है,लेकिन लोहिया के विचार गुम हो गए हैं।
लोहिया परिवारवाद और पूंजीवाद के घोर विरोधी थे, लेकिन उनके चेलों को इसी रोग ने घेर लिया। लालू और मुलायम का परिवारवाद अब छुपा नहीं रहा। लालू घोटालों में फंसे खड़े हैं तो सपा की कमान मुलायम ने पूंजीवादियों को सौंप दी थी। खुद को बहुत बड़ा लोहियावादी कहने वाले मुलायम सिंह मंगलवार को लखनऊ की सडक़ों पर मूर्ति अनावरण को लेकर भिड़ते नजर आए। अच्छा होता,अगर मुलायम का यह संघर्ष लोहिया की विचारधारा को लेकर होता।
वैश्वीकरण के बाद देश की राजनीति का चरित्र भी तेजी के साथ बदला है। भाजपा और कांग्रेस की टॉप लीडरशिप से गरीब और मजदूर गायब है। नवगठित गडकऱी ब्रिगेड से साफ है कि अमेरिकी लोकतंत्र की तर्ज पर हमारे राजनेता भी ग्लैमर और यूथ के नाम पर राजनीति का नया चश्मा चढ़ाना चाहते हैं। कांग्रेस के यूथ बड़े नेताओ की औलाद है तो भाजपा भी अछूती नहीं है। वंशवाद का विषवृक्ष सभी दलों में फल-फूल रहा है। ऐसे में लोहिया की जरूरत शिद्दत से महसूस होती है।
डा.राम मनोहर लोहिया ने अपने विचारों को जीवन में ढ़ाल लिया था। लोहिया की मृत्यू के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान हिन्दुस्तान आए। उन्होंने दिल्ली में लोहिया के घर जाने की इच्छा जाहिर की तो बताया गया कि लोहिया का कोई घर नहीं है। खान साहब ने कहा कि वो तो मुझसे भी बड़ा गांधीवादी निकला। जीवन के अंतिम दिनों में लोहिया बीमार थे। कुछ चाहने वालों ने कहा कि अब घरवालों को खबर कर देनी चाहिए। लोहिया ने कहा कि पूरा देश मेरा घर है और देशवासियों को पता है कि उनका आदमी बीमार है। लोहिया का घर चारदीवारी से बढकऱ पूरा देश हो गया था तो आज राजनीति करने वालों के घरों की परिभाषा छोटी हो गई है। आम आदमी का दर्द नहीं झेलने वाले नीतियां बना रहे हैं। सत्तर फीसदी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीची है,लेिन देश को माल्स और मल्टीप्लेक्स के सपने दिखाए जा रहे हैं। कृषि मंत्री शरद पवार फ्रांस महारानी की तर्ज पर रोटी हो तो ब्रेड खाओ का नारा दे रहे हैं। इस समय लोहिया के विचारों की शान को तेज करने की जरूरत है। मूर्तियों पर माला चढ़ाने की जगह जिंदा कौमों को संघर्ष करना चाहिए। शायद यही लोहिया को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

गौरव त्यागी

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