बुधवार, 5 मई 2010

खेल संघों की जंग


खेल संघों को लेकर जंग जारी है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए संघ पदाधिकारी एक मंच पर आ गए हैं। काश कभी खेलों के लिए ऐसी एकजुटता देखने को मिलती तो भारतीय खेलों की हालत कुछ और होती। लंबे समय से कुर्सी पर काबिज राजनीतिज्ञ और नौकरशाह हो-हल्ला कर रहे हैं। आखिर उन्हें खेल संघों की कुर्सी क्यों चाहिए? दरअसल सालों से खेलों के नाम पर उनका विकास हो रहा है।क्रिकेट बोर्ड तो दुनिया का सबसे ज्यादा पैसे वाली संस्था है, लेकिन दूसरे खेल संघों में भी खेलों के नाम पर घपला कम नहीं है। तभी तो कलमाड़ी, गिल और मल्होत्रा जैसे लोग प्रधानमंत्री से गुहार लगा रहे हैं। भारत में पैसे के अभाव में प्रतिभा दम तोड़ देती हैं और दूसरी तरफ खेलसंघों के नाम पर नौकशाह और नेता ऐश कर रहे हैंं। कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है और सभी को उसका स्वागत करना चाहिए।अब थोड़ी सी गंभीर कोशिश खेलों को सुधारने की भी हो जाए।

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