सोमवार, 6 जून 2011
राजनीति जीती, जनता हारी
जेपी आंदोलन के लंबे समय बाद पूरा देश भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर एकजुट होता दिखाई दिया। अन्ना के आंदोलन में दिल्ली और मुंबई की सड़कों पर युवाओं का सैलाब उतर आया तो सरकार बैकफुट पर आ गई। राजनीति बाजी चली। अन्ना के साथ समझौता किया। अनशन तुड़वाया। अब बातचीत में कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा। अन्ना बार-बार दिल्ली आते हैं और बेनतीजा वार्ता निपट जाती है। सत्ता चलाने वाले हुक्मरां अभी जनता के हाथ में लोकपाल का हथियार नहीं देना चाहते। अन्ना और उनके सहयोगी फिर अनशन की हुंकार भर रहे हैं। उधर हरिद्वार से दिल्ली आकर अनशन का दम भरने वाले रामदेव को राजनेताओं ने वापिस हरिद्वार भेज दिया है। सत्याग्रह के सहार अंग्रेजों को खदेड़ने वाले गांधी के अनुयायियों (कांग्रेस) ने देर रात सत्याग्रह का दमन कर दिया। पहले चिठ्टी में रामदेव फंसे तो फिर गिरफ्तारी के बाद आंदोलन टूट गया। साठ साल से भ्रष्ट तंत्र की जड़ें पाताल तक पहुंची हैं। ये एक अनशन से नहीं उखड़ने वाली। उधर भाजपा भी राजनैतिक लाभ की चाह नहीं रोक पाई। उसके बड़े नेता रात भर झूमते रहे। जनता भूख और भ्रष्टाचार से त्रस्त है। उसका गुस्सा कभी अन्ना के आंदोलन में दिखता है तो कभी रामदेव के अनशन में। बार-बार जनता को राजनेताओं ने ठगा है। अब नेताओं पर विश्वास नहीं रहा तो वो सामाजिक कार्यकर्ताओं और योग गुरू में उम्मीद तलाश रही है, लेकिन राजनेता चतुर हैं। उन्होंने पूर आंदोलन की दिशा ही मोड़ दी है। भ्रष्टाचार के हमाम में सभी दल नंगें हैं। ऐसे में ड्रामा चल रहा है। वोट के गणित को ध्यान में रखकर रणनीति तैयार हो रही है। देखते हैं सियासत का ये भ्रष्ट सफर कितना लंबा चलता है।
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