बुधवार, 17 मार्च 2010

कब मिलेगी गंगा को मुक्ति

कुंभ में डुबकी लगा रहे लाखों लोग अपने लिए मोक्ष की कामना कर रहे हैं। यह कामना गंगा में नहाकर सारे पाप धोने से जुड़़ी है, लेकिन गंगा खुद धीरे-धीरे दम तोड़ रही है। गंगा की ये मूक सिसकी न तो हमारे हुक्मरां सुन रहे हैं और ना ही कुंभ में शाही सवारी करने वाले बाबा। सरकारी योजनाएं परवान नहीं चढ़ती और सन्यासी असली-नकली साबित करने में जुटे हैं। सबसे खराब बात ये है कि आम आदमी भी गंगा में केवल नहाने तक सीमित है। वह नहीं जानता कि गंगा का मतलब केवल नदी नहीं है। यह करीब 1600 मील के इलाके में की जिंदगी से जुड़ी है।
हजारों साल से गंगा भारत की लाइफलाइन रही है। गंगा और यमुना के बीच का दोआब कृषि के लिए सबसे मुफीद रहा। शायद यही कारण है कि हिंदुओं के लिए गंगा जीवनदायनी रही है। उसकी पूजा की जाती है। गंगा किनारे पडऩे वाले ऋषिकेष, हरिद्वार और बनारस जैसे शहरों में रोज गंगा आरती की जाती है। गंगा के बगैर हिन्दुस्तानी सभ्यता परवान नहीं चढ़ सकती थी। मोक्षदायनी गंगा खुद मानव के कृत्यों के चलते गंदी हो रही है।
14000 फीट की ऊंचाई पर गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और 2506 किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। रास्ते में पडऩे वाले शहरों को गंगा ने आबाद किया है। गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद, बनारस को गंगा के चलते ही धार्मिक नगरियों का दर्जा मिला, लेकिन इन शहरों को गंगा को गंदा नाला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन शहरों में चार सौ मीलियन लोग रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक करीब 20 लाख लोग रोज नहाते हैं। शहरों से निकलने वाला कचरा सीधे गंगा में डाला जाता है। आज हालत ये कि कोलीफार्म बैक्टिरिया हरिद्वार में 5500 है। पीने के लिए पचास से कम, नहाने के लिए 500 से कम और कृषि कार्य के लिए यह 5000 से कम होना चाहिए। बनारस में कोलीफार्म का स्तर तीन हजार गुना ज्यादा है। 89 मिलियन लीटर सीवेज हरिद्वार तक सीधे गंगा में डाला जाता है। औद्योगिक कचरा गंगा को मैला कर रहा है। ऐसा नहीं है कि गंगा की सफाई का कोई प्रयास नहीं हुआ, लेकिन यह सफाई कम और जेब भरने का प्रयास ज्यादा रहा। अप्रैल 1985 में गंगा एक्शन प्लान तैयार किया गया। 15 साल में 901 करोड रुपए इस प्लान पर खर्च हुए। इसके बाद भी गंगा की हालत में सुधार नहीं हुआ। यपीए सरकार ने बजट में अलग से गंगा के लिए धन आवंटित किया है। सैकड़ों एनजीओ की रोजी-रोजी गंगा की सफाई के नाम पर चल रही है। अब वक्त आ गई है जब जनता को खुद गंगा की कमान संभालनी होगी। सदियों तक गंगा इंसान के पाप धोती रही है, लेकिन अब इंसान को गंगा की सफाई करनी होगी। कहीं ऐसा न हो कि केवल प्लान बनते रहें और गंगा का हाल भी सरस्वती जैसा हो जाए।

गौरव त्यागी

2 टिप्‍पणियां:

  1. bhai ji article to apne achha likha hai.
    lekin yaar ye batao ki mukti ki baat hi karte ho ya uske liye kaam bhi karte ho.

    apne pichle article me aapne bhasha ki mukti ki baat ki thi lekin khud hi hinglish or khichdi bhasha ka prayog karte ho.
    (1600, लाइफलाइन, मुफीद, मीलियन, बैक्टिरिया, सीवेज, एक्शन प्लान) apne pichle article me prayog kiye hue in shabdo ko kaun si bhasha kahoge. agar aap jasie jimmedar log hi aisa karenge to bechari bhasha ki mukti kaise hogi aur janchatna kaise ho payegi.

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