लालकिले से पीएम ने देश को एक रटा-रटाया भाषण सुनाया। सूबों के सीएम और जनपदों में तैनात अफसरों ने भी आजादी के आयोजन की रस्म अदा कर दी। बीते 67 वर्षों से हम आजादी के जश्न को एक रस्म के तौर पर मनाते हैं। पतंगबाजी, स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम और लालकिले से राजनैतिक संदेश।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम(1857) के बाद नब्बे वर्षों तक संयुक्त भारत में आजादी का संघर्ष चला। तन-मन और धन के साथ आजादी के दीवानों ने अपने सपने भी देश के नाम कर दिए। गांधी अंतिम आदमी तक आजादी की लौ ले जाना चाहते थे तो भगत सिंह सबको बराबरी के हक के पक्षधर थे। कुलमिलाकर जंगे आजादी में जूझ रहे सभी बड़े नेताओं के दिल में आजाद मुल्क के लिए बड़े सपने थे।
आजादी के बाद वे सपने कहीं खो गए। पहले देश दो टुकड़ों में बंटा। उसके बाद शुरू हुआ राजनेताओं का खेल। जमकर लूट मची। कौड़ियों के लोग करोड़ों में खेलने लगे। पीएम का भाषण सुना। सुनकर निराशा हुई। जम्मू में किश्तवाड़ जल रहा है। दक्षिण में तेलंगाना के नाम पर आंध्र सुलग रहा है। पूरे देश में रेड कारिडोर बिछ रहा है। चीन हमे आंख दिखा रहा है और पाकिस्तान सीमा पर फायरिंग कर रहा है। हमारे पास सुरक्षा को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। देश के अंदर और बाहर चारों तरफ असुरक्षा की भावना है।
उत्तराखंड़ में आई बाढ़ के समय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बेबस दिखाई दिया। हम प्रकृति के सामने पंगु थे। कमिया हमारी थी। हमें अपने कथित विकास का खामियाजा भुगतना था। 67 वर्ष बाद हमें फूड सिक्योरिटी बिल पास करना पड़ रहा है। कुपोषण और बीमारी से देश जकड़ा हुआ है। संसद हंगामे की भेंट चढ़ती है। मंत्री बने लोग अनाप-शनाप बयान देते हैं। मीडिया में बयाने देने और वापिस लेने की बाजीगरी है। कौन पीएम होगा। बहस गर्म है। देश के विकास का एजेंड़ा क्या है? यह मुद्दा गायब है। मैं निराशा की बात नहीं कर रहा, लेकिन जनता को जानने का हक है कि आखिर गद्दा संभालने वाले देश को किस दिशा में ले जाएंगे। आजादी के दिन विचारों की गुलामी से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए। हम पर नीतियां थोपी न जाएं। वे इस देश के हिसाब से बने। नीतियों में जनता की भागीदारी होगी। इसे लेकर पीएम कुछ बताते तो शायद अच्छा लगता। पर शायद हमने तो जश्न को रस्म मान लिया है। एक और 15 अगस्त है। वहीं पुराने कार्यक्रम। टीवी पर कुछ देशभक्ति की फिल्में। एफएम पर भुले-बिसरे गीत। बाहर बारिश का मौसम है। पकौड़े खाइये और टीवी देखिए। पकौड़ों से प्याज गायब मिलेगी। यह भी सरकार का कारनामा है। खुश रहिए। 15 अगस्त जो है।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम(1857) के बाद नब्बे वर्षों तक संयुक्त भारत में आजादी का संघर्ष चला। तन-मन और धन के साथ आजादी के दीवानों ने अपने सपने भी देश के नाम कर दिए। गांधी अंतिम आदमी तक आजादी की लौ ले जाना चाहते थे तो भगत सिंह सबको बराबरी के हक के पक्षधर थे। कुलमिलाकर जंगे आजादी में जूझ रहे सभी बड़े नेताओं के दिल में आजाद मुल्क के लिए बड़े सपने थे।
आजादी के बाद वे सपने कहीं खो गए। पहले देश दो टुकड़ों में बंटा। उसके बाद शुरू हुआ राजनेताओं का खेल। जमकर लूट मची। कौड़ियों के लोग करोड़ों में खेलने लगे। पीएम का भाषण सुना। सुनकर निराशा हुई। जम्मू में किश्तवाड़ जल रहा है। दक्षिण में तेलंगाना के नाम पर आंध्र सुलग रहा है। पूरे देश में रेड कारिडोर बिछ रहा है। चीन हमे आंख दिखा रहा है और पाकिस्तान सीमा पर फायरिंग कर रहा है। हमारे पास सुरक्षा को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। देश के अंदर और बाहर चारों तरफ असुरक्षा की भावना है।
उत्तराखंड़ में आई बाढ़ के समय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बेबस दिखाई दिया। हम प्रकृति के सामने पंगु थे। कमिया हमारी थी। हमें अपने कथित विकास का खामियाजा भुगतना था। 67 वर्ष बाद हमें फूड सिक्योरिटी बिल पास करना पड़ रहा है। कुपोषण और बीमारी से देश जकड़ा हुआ है। संसद हंगामे की भेंट चढ़ती है। मंत्री बने लोग अनाप-शनाप बयान देते हैं। मीडिया में बयाने देने और वापिस लेने की बाजीगरी है। कौन पीएम होगा। बहस गर्म है। देश के विकास का एजेंड़ा क्या है? यह मुद्दा गायब है। मैं निराशा की बात नहीं कर रहा, लेकिन जनता को जानने का हक है कि आखिर गद्दा संभालने वाले देश को किस दिशा में ले जाएंगे। आजादी के दिन विचारों की गुलामी से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए। हम पर नीतियां थोपी न जाएं। वे इस देश के हिसाब से बने। नीतियों में जनता की भागीदारी होगी। इसे लेकर पीएम कुछ बताते तो शायद अच्छा लगता। पर शायद हमने तो जश्न को रस्म मान लिया है। एक और 15 अगस्त है। वहीं पुराने कार्यक्रम। टीवी पर कुछ देशभक्ति की फिल्में। एफएम पर भुले-बिसरे गीत। बाहर बारिश का मौसम है। पकौड़े खाइये और टीवी देखिए। पकौड़ों से प्याज गायब मिलेगी। यह भी सरकार का कारनामा है। खुश रहिए। 15 अगस्त जो है।