गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

बंदूक और विकास

नक्सलवाद को लेकर देश में हो-हल्ला हो रहा है। पक्ष और विपक्ष सभी इस मामले में एकजुट है। सभी चाहते हैं कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सख्त कार्रवाई हो। कुछ तो हवाई हमले के भी पक्षधर है, लेकिन हम सभी समस्या के मूल से बहुत पीछे हट रहे हैं। देश का आम नागरिक होने के बाद भी आदिवासियों को उनका हक नहीं मिला। जल, जंगल और जमीन के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं। नक्सली उनके बीच जाकर काम करते हैं और हम एअर कंडीशन कमरों में बैठकर कार्रवाई के बारे में सोचते हैं। तमाम आतंकी वारदातों के बाद भी हम पाक के सात वार्ता करते हैं, लेकिन नक्सलियों के मामले में ऐसा नहीं है। देश के भटके हुए युवा को मुख्यधारा में जोडऩे का प्रयास करना चाहिए। आदिवासियों को चिंता है कि उनके संसाधन कारपोरेट घरानों को सौंप दिए जाएंगे। यह चिंता वाजिब है। देश में निजीकरण का दौर है और प्राकृतिक संसाधनों को कब्जाने की जंग जारी है।ऐसे में नक्सली आदिवाशियों को यही डर दिखाते हैं। नक्सलवाद का खात्मा बंदूक नहीं विकास से हो सकता है।गांधी के देश में उनके ही सिद्धातों को भुला दिया गया। भगवान राम भी वनवासियों के बीच चौदह साल रहे और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ा तो फिर आज के हुक्मरां ग्रीन हंट पर भरोसा क्यों कर रहे हंै? कहीं इसके पीछे भी मल्टीनेशनल कंपनियों का दिमाग तो नहीं? देश को जनता को जानने का हक है कि आखिर इस समस्या से निपटने का सरकार के पास क्या हल है? वक्त आ गया है कि सभी राजनैतिक दलों को इस मामले पर अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा।

1 टिप्पणी:

  1. right..
    This is quite a grave issue. and can't be solved by just discussing it in air conditionar room.
    govt has to think why tribal are choosing the path of rebel.
    govt should provide them the basic necessaties which they deprived of and acclimate them in our mainstream society.
    Tribal needs our support not the ammunation.
    using guns just help in buiding divided India
    Empowerment of tribal is necessary for the growth of united india
    n i appreciate blogger for throwing light on such serious issue.

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